हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 11 मार्च 2014

श्रापित...

क्या कहे किससे कहें , क्यों कहे हम निज व्यथा। 
व्यर्थ है कहना यहाँ कुछ , जहाँ लोग सुनते हैं कथा। 
हाँ कथा ही सुन रहे सब , भूल कर निज संवेदना। 
हो गए जड़वत जहाँ सब , क्या वो समझेंगे वेदना। 
यदि सत्य को भी सत्य का , जब पड़े देना प्रमाण। 
समझ लीजै तब वहाँ , बस निकलने वाले हैं प्राण। 

आम क्या और खास क्या , जब यहाँ दोनों व्यथित। 
कौन पोंछे आँसू किसके , राज्य ही हो जैसे श्रापित। 
किस लिए किसके लिए , हम करें फिर कुछ यहाँ। 
मृत्यु का ही उत्सव मानते , लोग हों जब सब यहाँ। 
फिर कौन शोषित कौन शोषक , ये प्रश्न ही बेकार है। 
स्वछंदता से कर रहे जब , सब यहाँ व्याभिचार हैं। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


1 टिप्पणी:

Anamikaghatak ने कहा…

बहुत बढ़िया.........सत्यवचन

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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