क्या कहे किससे कहें , क्यों कहे हम निज व्यथा।
व्यर्थ है कहना यहाँ कुछ , जहाँ लोग सुनते हैं कथा।
हाँ कथा ही सुन रहे सब , भूल कर निज संवेदना।
हो गए जड़वत जहाँ सब , क्या वो समझेंगे वेदना।
यदि सत्य को भी सत्य का , जब पड़े देना प्रमाण।
समझ लीजै तब वहाँ , बस निकलने वाले हैं प्राण।
आम क्या और खास क्या , जब यहाँ दोनों व्यथित।
कौन पोंछे आँसू किसके , राज्य ही हो जैसे श्रापित।
किस लिए किसके लिए , हम करें फिर कुछ यहाँ।
मृत्यु का ही उत्सव मानते , लोग हों जब सब यहाँ।
फिर कौन शोषित कौन शोषक , ये प्रश्न ही बेकार है।
स्वछंदता से कर रहे जब , सब यहाँ व्याभिचार हैं।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया.........सत्यवचन
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