कंक्रीट के जंगलो में , जीने की मारा-मारी है।
रोज खोदना कुआँ यहाँ , प्यास अगर बुझानी है।
क्या हक़ तेरा क्या है मेरा , बात ही करना नादानी है।
चंडाल चौकड़ी की केवल , चलती यहाँ मनमानी है।
यहाँ अपना पराया गड्मड है , मतलब की दुनियादारी है।
रिश्ते नातो को समय नहीं , आभासी दुनिया से बस यारी है।
क्या यही है जीवन जो हम जीते ,भूल गये हम कब हैं जीते ?
आँख खुली शुरू भागम-भाग , क्यों यंत्र मानव सा हम जीते ?
पैसा-पैसा केवल पैसा , है किसके लिए ये सारा पैसा ?
जिनके लिए हम चाहते पैसा , क्या उन्हें नजदीक है लाता पैसा ?
ना स्वाभिमान ना दिलो में मान , बेच दिया हम सबने सम्मान।
गला काट जीवन की होड़ में , बस भरते हम एक दूजे के कान।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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