क्यो होता बेकल रे मनवा , जग तो रिश्तो का मेला है ।
आज यहां कल वहां पर डेरा , ये जग बस रैन बसेरा है ।
आज तेरे जो संगी-साथी , कल होंगे किसी और के वो ।
आज शान जिनकी तुझसे , कल होंगे किसी और के वो ।
रोज बदलता जल नदिया का , रोज बदलती राह नदी ।
रोज पूर्व मे सूरज उगता , मगर नही टिकता है कभी ।
मौसम आते जाते हैं , नित नयी छ्टा वो लाते हैं ।
चाहे जितना चले पथिक , राह बदल ही जाते हैं ।
मत हो यूँ बेकल तू मनवा , यह तो जग का खेला है ।
आज अमावस रात अगर , कल पूर्णमासी का मेला है ।
कितना ही प्यारा हो तुमको , वस्त्र पुराना होगा ही ।
कितना ही तुम उसे सहेजो , उसको फ़टना होगा ही ।
इसी तरह जीवन के रिश्ते , जीर्ण उन्हे भी होना है ।
आज भले वो साथ तुम्हारे , कल तो उनको खोना है ।
मत सोंचो बाते कल की , देखो आज जो मेला है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG