हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 6 मई 2012

क्यो होते बेकल रे मनवा…

क्यो होता बेकल रे मनवा , जग तो रिश्तो का मेला है ।
आज यहां कल वहां पर डेरा , ये जग बस रैन बसेरा है ।
आज तेरे जो संगी-साथी , कल होंगे किसी और के वो ।
आज शान जिनकी तुझसे , कल होंगे किसी और के वो ।

रोज बदलता जल नदिया का , रोज बदलती राह नदी ।
रोज पूर्व मे सूरज उगता , मगर नही टिकता है कभी ।
मौसम आते जाते हैं , नित नयी छ्टा वो लाते हैं ।
चाहे जितना चले पथिक , राह बदल ही जाते हैं ।

मत हो यूँ बेकल तू मनवा , यह तो जग का खेला है ।
आज अमावस रात अगर , कल पूर्णमासी का मेला है ।
कितना ही प्यारा हो तुमको , वस्त्र पुराना होगा ही ।
कितना ही तुम उसे सहेजो , उसको फ़टना होगा ही ।

इसी तरह जीवन के रिश्ते , जीर्ण उन्हे भी होना है ।
आज भले वो साथ तुम्हारे , कल तो उनको खोना है ।
मत सोंचो बाते कल की , देखो आज जो मेला है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

मूक, बधिर, वाचाल..

लोग कहते है ये इन्सान कितना बोलता है ?
शब्दों को शब्दों से ये काटता है ,
अपने ही बातों की रट लगाता है ।

सीखा नहीं इसने कभी, चुप हो रहना ।
ना जाने क्यों ये इतना बोलता है ?
तो जाकर पूंछा मैंने ये सवाल उसी से ,

बताया फिर हकीकत भी उसने बोलकर ही ।
ये दुनिया अजब मूर्खो की है दुनिया ,
सभी दूसरो को हैं बस उपदेश देते ।
उपदेश तो चलो हम चुप रहकर भी सुन लें ,
मगर तोहमते भी आदतन लगाते रहते सभी ।
शुरू के दिनों में मै सुनता था केवल  ,
मगर मेरी हद भी गुजरने लगी फिर ।
तो मैंने कहा अब बनकर दर्पण सा रहूँगा ,
जो जैसा कहेगा उससे वैसा कहूँगा ।

मगर इस जहां में है सभी वाचाल ही ,
फिर कैसे रहूँ मै जग में चुपचाप ही ।
अगर ना बोलो तो सब कहते यही ,
देखो वो डरकर कैसा खड़ा है अभी ।
अगर कुछ  बोलो तो कहते सभी ,
देखो ये रहता नही चुपचाप कभी ।

अगर सच वो बोले तो सुन लूँ मै केवल ,
मगर झूँठ का साथ नहीं होता मुझे बर्दास्त।
है अगर गर्ज, मर्ज दुनिया की गप्पे लड़ना,
तो सुनना पड़ेगा उसे मेरा भी अफसाना ।
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शनिवार, 5 मई 2012

एक सवाल..

नाहक ही पूंछ बैठे हम , कल एक सवाल उनसे ।
वो जिन्हे हम याद करते, थकते नही है दिल से ।

मन के कोनो मे जिनकी, याद बसी रहती है हर पल । 
ना केवल फ़ुरसत में, व्यस्तता के पलो मे भी हर पल ।

सवाल था सीधा सा, क्या कभी हम याद आते है उन्हे । 
बड़ी ही मासूमियत से फिर , वो बोले देखते हुये हमे ।

अरे क्यो सोंचा हम कभी याद करते नही तुम्हे ?
हर खाली लम्हों मे बस आप याद आते है हमें !

बात सही थी, यूँ आयी गयी और भुला दी गयी कुछ पल मे ।
पर यह भी सच है उन्हे खाली लम्हा मिलता कहां जीवन मे ?

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

एतबार..

तुम जो अक्सर ही ताना कसते हो, झगड़ते हुए मुझसे ।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।

क्यूँ नहीं मुझको हो पता पूरा एतबार, अब भी तुम पर...?
पर कभी सोंचा है तुमने यही, मेरी जगह खुद को रखकर ?

लो आज बताये देता हूँ तुम्हे खुले दिल से दिलबर,
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।

खाली शब्दों को मै कोरा कागज कहता हूँ आदतन अनपढ़ ।
हाव-भाव जज्बातों की भाषा ही मै समझ पाता हूँ अक्सर...।

तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
और हमारे भरोसे का अंदाज भी वैसा ही है अब अभी ।

क्या करो तुम भी मजबूर हो अपनी आदत से दिलबर ।
हम भी मजबूर है अपनी चाहत की अदा से अक्सर ।

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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कुछ बहुत पुरानी बाते...

रात अचानक जाने कैसे , याद मुझे तुम आये प्रियवर ।
खोया था मै अपने मन के , उठे खयालो में प्रियवर ।
कुछ भूली बिसरी यादे थी , कुछ बहुत पुरानी बाते थी ।
कुछ याद लौट कर आती थी , कुछ मन को मेरे सुहाती थी ।
फिर जाने कैसे तेरी यादे , बनकर आँधी सी छाने लगी ।
मुझको मेरे अंतर्मन तक , व्याकुल कर वो जाने लगी ।

यूँ तो जाने कितने दिन, वर्ष काल महीने बीत गए है ।
लेकिन शायद मेरे मन में , वो अब भी ताजे बने हुए है ।
माह जेठ था शायद वो , धरती व्याकुल प्यासी थी ।
तेरे अधरों की तपिश मुझे , पल में जलाने वाली थी ।
इससे पहले कि जलकर मेरा , हश्र पतंगे जैसा होता ।
तेरे प्रेम की अग्नि में , तपकर स्वर्ण मै शायद होता ।

दूर कही कुछ बदली छाई , बारिश संग वो लेकर आयी ।
लगे भींगने हम दोनों ही , जब बंद हो गयी बहनी पुरवाई
शायद सावन आया था वो , घनघोर घटा संग लाया था
उसके अविरल धारा ने फिर , कुछ मेरा अश्रु बहाया था
इससे पहले की अश्रु मेरे , खारा करते मीठी नदियों को  
रोम रोम मेरा लगा ठिठुरने , अगहन की ठंडक आने लगी

जब तक आया पूस माह , तुम मुझसे दूर ही रहने लगे
माघ की ठंडक के संग शायद , राह नयी तुम चुनने लगे
फाल्गुन में भी मिले नहीं तुम , होली बदरंग सी बीती थी
लिए अबीर गुलाल मै बैठा था , सज रही तेरी जब डोली थी
यूँ तो गुजर गए है अब तक , कुछ वर्ष महीने दिन अरु काल
लेकिन मेरे मन में अब भी , शेष कही है तेरा हाल.............


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गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

एक सितारा..

दूर गगन के कोने में , जो एक सितारा चमक रहा ।
वीरान अकेली राहों में , वो मेरा साथी सदा रहा ।
जब जब औरो ने मुझको , चुपचाप अकेला छोड़ दिया ।
मुझको मेरी महफ़िल में , जब गैर बनाकर छोड़ दिया ।
वो एक सितारा आगे बढ़ , हर पल मेरा साथ दिया ।
जब दिखी नहीं परछाही भी , हमसाये का एहसास दिया ।

अब आज अकेला है जब वह , क्यों न उसका साथ मै दूं ।
चुपचाप किनारे रहकर मै , इस रिश्ते का बलिदान क्यों दूं ।
हाँ कल फिर से चमकेगा , कोई और नया सितारा फिर ।
लेकिन क्या दिल का रिश्ता , हम जोड़ सकेंगे उससे फिर ।
सम्बन्ध सदा ही बनाते है , ठोस कसौटी पर कसकर ।
मित्र सदा ही मिलते है , दिल में औरो के बसकर ।

अगर चाहिए मित्र 'अनंत' , रिश्तो को कसौटी पर परखो ।
लेकिन उससे पहले तुम , स्वयं को निश्चित ही परखो ।

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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

फरियाद..

तेरी यादो में ही कट गयी , देखो कल मेरी सारी रात ।
जब होने लगा सबेरा तब , फिर आयी मुझे तेरी याद ।

तुम ही थे मेरे स्वप्नों में , और हकीकत में भी पास ।
बीत रहे हर एक पल में , केवल तुम ही थे  मेरे साथ ।

आँखों  में बस  तेरा चेहरा , मन  में बस तेरी यादे  है ।
नींद नहीं आती है मुझको , एक तेरी याद में जागे है ।

सोच रहा है मन मेरा , क्या तुमको भी मै आया याद ।
तुम साथ रहो मेरे हर पल , यही मन करता फरियाद ।

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आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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