जो सबको नियम सिखाते है , अक्सर वो ही उसे भुलाते हैं ।
जो सबको सच बतलाते है , अक्सर वो ही धोखा खाते है ।
जब तक कथनी और करनी का , वो मेल नहीं कर पाते है ।
तब तक बस घोंघा बसंत सा , वो जीवन जीते जाते है ।
वो कठिन दौर होता है जब , हम स्वयं पर नियम लगाते है ।
अपने बताये आदर्शो को , हम स्वयं आगे बढ़ कर निभाते हैं ।
यूँ तो औरो को निश दिन ही , हम नियम नए बतलाते हैं ।
उनको पालन करने की कुछ , तरकीबे उन्हें सुझाते हैं ।
अपने कोरे-कोरे आदर्शो की , हम पुस्तक कई छपाते है ।
लेकिन उनको अपने ऊपर , हम कितना लागू कर पाते है ।
जब तक कथनी और करनी का , हम मेल नहीं कर पाते हैं ।
तब तक खोखले तने सा तनकर , हम यूँ ही मुरझाते जाते है ।
वो कठिन दौर होता है जब , हम अपनो से धोखा खाते हैं ।
अपनी आत्मा बेंच कर शायद , हम उसका मूल्य चुकाते हैं ।
जब तक हम निज जीवन में , खोखलापन नहीं मिटाते हैं ।
तब तक अपने ही जीवन से , हम धोखा करते जाते हैं ।
जो सबको नियम सिखाते है , अक्सर वो ही उसे भुलाते हैं ।
जो सबको सच बतलाते है , अक्सर वो ही धोखा खाते है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
सुन्दर सीख देती हुई रचना ...
सुन्दर रचना
एक टिप्पणी भेजें