आग और पानी का , नहीं मेल होता है ।
सदा सच बताना , नहीं खेल होता है ।
दिलों में सभी के , कुछ अरमान होते हैं ।
कौन कहता है यहाँ , सब बेईमान होते है ।
मिलन क्या जरुरी है , अगर साथ चलना हो ?
शब्द क्या जरुरी है , अगर बात कहना हो ?
नदी के तटों का , होता एक रिश्ता है ।
भावना के तल पर , नहीं कोई पिसता है ।
बराबर का दोनों को , अधिकार होता है ।
आपस में उनके भी , कुछ प्यार होता है ।
कुछ ऐसा ही मेरे मन में , उदगार होता है ।
मेरी नज़रों में जिसका , सदा इजहार होता है ।
अगर तुम समझ पाओ , रिश्तों की जटिलता ।
नहीं तुम कहोगे इसे , मन की मेरे कुटिलता ।
मुझे मेरी सीमाओं का , एहसास है सदा ही ।
मगर क्या तुम्हे मुझपर , विश्वास है जरा भी ।
करके साहस तुम सदा , खुला सच मुझसे कहना ।
नजरें बचाकर मुझसे तुम , ना कभी संग मेरे रहना ।
2 टिप्पणियां:
ati sundar
Like always Very good write-up Vivek bhai. Pls keep it up. Sometimes i use this blog to get relief mentally and Never i feel disappointed.
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