नींद भले ही टूट गयी हो , स्वप्न अधूरे छूट गए हो ।
संकल्प अधूरा रहे न कोई , श्रम बल को माने सब कोई ।
संकल्प अधूरा रहे न कोई , श्रम बल को माने सब कोई ।
स्वप्न तो केवल स्वप्न ही है , जिसका आधार ही कल्पित है ।
श्रम वो ठोस धरातल है , जिसका परिणाम सदा सुखित है ।
मन ज्यों होता है सजग , स्वप्न तभी खंडित होता ।
श्रम वो ठोस धरातल है , जिसका परिणाम सदा सुखित है ।
मन ज्यों होता है सजग , स्वप्न तभी खंडित होता ।
मन में जब कोई भ्रम होता , संकल्प तभी असहज होता ।
संकल्प और इस स्वप्नलोक का , केवल इतना नाता है ।
स्वप्न दिशा नव देता है , संकल्प सदा उसे पाता है ।
स्वप्न लक्ष्य सुझाता है , संकल्प विजित कर लाता है ।
फिर व्यर्थ व्यग्र ना रहो पथिक , स्वप्न तुम्हारा टूट गया ।
लो भोर हो रही है देखो , आती संकल्प निभाने की बेला ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें