हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

उड़ जहाज का पंछी..

आप यूँ दिल के करीब , जब नजर आने लगे ।
बात चुभी उनको ही पहले , जो दूर थे जाने लगे ।
शायद उन्हें था ये गुमान , हम बिखर जायेंगे यूँ ही ।
छोड़ कर दिल तोड़ कर , वो दूर जब जायेंगे यूँ ही ।
माना गलत थी सोंच पर , बात काफी हद तक सही थी ।
हमने ही उनसे कभी ये , कमजोरियाँ अपनी कही थी ।

पर गलत वो आँक बैठे , गलत चाल पर शह दे बैठे ।
बिखरा किला हमारा मगर , हम मात उन्हें ही दे बैठे ।
माना रिश्ते शतरंज नहीं , पर बाजी यहाँ भी लगती  है ।
शह और मात से भी आगे , कुछ बाते सदा ही चलती हैं ।
हाँ यहाँ सुधारा जा सकता , चाले गलत जो चल बैठे ।
ज्यों उड़ जहाज का पंछी , फिर जहाज पर जा बैठे ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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