मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जो भी हूँ मै जैसा हूँ...

जो भी हूँ मै जैसा हूँ , अपने आप में वैसा हूँ। 
लाख कमी हो मुझमे , फिर भी अपने जैसा हूँ। 
कभी ख़ुशी कभी गुस्से में , अपनी बातें कहता हूँ।
अपनो की सब सुनता पर , अपने दिल की करता हूँ।

ना बनने की कोशिश की , ना औरो जैसा दिखने की। 
यूँ जो भी हूँ मै जैसा हूँ , बस अपने आप में सच्चा हूँ। 


कोई साथ चले या दूर रहे , अपनो के संग सदा रहता हूँ। 
अच्छा कहो या बुरा मुझे , मै अपने दिल की करता हूँ। 
गुण हो ये या दुर्गुण हो , बात ना दिल में रखता हूँ। 
हो खुशहाल या टूटा  दिल , नहीं दिल पर बोझ मै रखता हूँ। 

फिर भली लगे या लगे बुरी , मै  बात सामने कहता हूँ। 
जो भी हूँ मै जैसा हूँ , स्वय में निश्छल भाव से वैसा हूँ।  


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


बुधवार, 29 जनवरी 2014

करते रहेंगे नौटंकी यार...

एक था राजा एक प्रजा थी , 
प्रजा पर सदा राजा की कृपा थी। 
यूँ राजा से पहले भी प्रजा थी , 
पर भूंखी नंगी वो सदा थी। 
था राजा का एक राजकुमार , 
जो था राजा से भी ज्यादा सुकमार। 
यूँ वो सदा विदेश ही दौड़ा करता , 
पर कभी कभी जनकल्याण का भी दौरा पड़ता। 
फिर जब देख प्रजा को उसे आता तरस , 
लगता जैसे स्वाती नक्षत्र में पड़े बादल बरस। 

जब भाव-विभोर हो जाता वो , 
समरसता लाने गरीबो के घर जाता वो। 
भूंखी-नंगी खानदानी प्रजा को ,
फिर आकर गले लगाता वो। 
खाना खाकर उनके घर में ,
लेकर डकार भूल सब जाता वो। 
चेले-चापड़ कलछुल-चमचे ,
जब जय-जयकार मचाते थे। 
देख कुँवर की पप्पूगिरी ,
राजा-रानी संग मंत्री हर्षाते थे। 

तभी ना जाने कहाँ किधर से ,
एक नया बहुरुपिया देश में आया। 
स्वॉँग बनाकर तरह तरह का ,
जनता के दिल को हर्षाया। 
बोला ख़तम करेंगे हम ,
राजा-रानी मंत्री-संतरी का भ्रष्टाचार। 
फिर बीच सड़क पर चलाएंगे ,
हम जनता की चुनी सरकार। 
लोक-लुभावन नारे देकर ,
सदा करते रहेंगे नौटंकी यार। 

यूँ जनता तो जनता ही है ,
सदा बनना मूर्ख भाग्य में है। 
करे विधाता भी क्या तब ,
जब चूतिया नन्द,चन्द,घोड़ी सब। 
अब आगे की क्या कहें कहानी ,
घाल-मेल ज्यों दूध और पानी। 
आप-साँप की जोड़ी मिलकर ,

करते है देखो मनमानी। 
यही दुआ है देश की खातिर ,
जनता हो जाये थोड़ी सयानी। 


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 22 जनवरी 2014

रेखाओं में भविष्य...

खींच कर दो-चार लाइन, और बनाकर एक चतुर्भुज। 
देखता हूँ  बाँचते है , वो ना जाने क्या-क्या भविष्य। 
वो जिन्हे खुद का अभी तक , है पता मालूम नहीं। 
वो बताते है आसमानी , शक्तियों के हमको पते। 
वो जो शायद पढ़ सके ना , श्याह-सफ़ेद अक्षरो को। 
वो शान से है पढ़ रहे , हाथों पर उभरी इबारतो को । 

वो जिन्हे शायद पता हो , कैसी होगी आज की रात।  
वो हमें बतला रहे है , जन्म जन्मान्तरो की बात । 
ना मै नहीं कहता कभी , विद्या ये पूरी पाखण्ड है। 
पर मै ये कहता मित्र , अब शेष इसके कुछ खंड है। 
अब ये है प्यारी धरोहर , अभिलेखो और स्मारको में।  
मत सजाओ तुम इसे  , निज पुरषार्थ की दीवार में । 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

रविवार, 12 जनवरी 2014

बकवास...

ओ मुसाफिर इस तरह तू , है यहाँ हैरान क्यों। 
लगता है पहली दफा , इस देश में आया है तू। 
दूध की ये नालियां जो , दिख रही बहती तुझे। 
ये हकीकत में लहू है , जो लाल रह पाया नहीं। 
दिख रही तुझको यहाँ जो , हर तरफ ही होलिका।
वो हकीकत में है जलती , नव बधुओं की डोलियां।  

दिख रही तुमको यहाँ जो, होलिहारियो की टोलियां। 
वो हकीकत में खेलकर , आ रहीं खून की होलियां।
और ये जो भद्र पुरुष , तेरी बाँह में बाँह डाल रहे।
वो हकीकत में तुम्हारी , गर्दन को नापने जा रहे। 
ओ मुसाफिर दिख रहा , क्यों हैरान है इस तरह। 
लिख रहा क्यों व्यर्थ में , बकवास मै  इस तरह। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

सोमवार, 6 जनवरी 2014

एहसान फरामोश कठपुतलिया...

ये दौर है एहसान फरामोश कठपुतलियों का ?
या बागी होने को बेताब कठपुतलियों का ?

कल तक जिनके दामन में , मैंने फूल बरसाए थे। 
वो देखो आज बिछाते है , मेरी राहो में अब अंगारे। 
कल तक मेरी नूर से जो , रोशन हो बने सितारे थे।
वो देखो आज बुझाते है , मेरी राहों के ही उँजियारे।
कल तक जिनकी राहें मै , समतल करता चलता था। 
वो देखो आज बनाते है , अब मेरी राहों को ही पथरीले। 

कल तक मेरी साँसों से , जो राहत की साँसे पाते थे। 
वो देखो बोझिल करने को , तत्पर है मेरी साँसों को। 


कल तक मेरी नीयति से जो , अपनी शाख चलाते थे। 
वो देखो आज उठाने लगे , अब उंगली मेरे दामन पर। 

कल तक पाला था जिनको , अपनी ही अस्तीनो में।
वो देखो आज चुभोने को , हैं करते जहरीले दांतो को। 


क्या भूल गए वो मेरी क्षमता , या मद में आकर बौराये है ?
अपनी कठपुतली की डोरो को , शायद वो भाँफ ना पाये है ? 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


शनिवार, 4 जनवरी 2014

होना न होना..

कुछ होना या ना होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है , जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप को उसका पता है या नहीं।
क्योंकि यदि आपको कुछ होने का वास्तविक ज्ञान नहीं है तो वह होना ही व्यर्थ है , 
और यदि कुछ ना होने का आपको पता है , ज्ञान है , आभास है , तो वह ना होना भी आपके लिए महत्वपूर्ण है। 


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 1 जनवरी 2014

स्वागत है नव वर्ष २०१४ … तुम्हारा स्वागत है

पुरानी डायरी के पन्नो से निकली "नये साल १९९८ के स्वागत में लिखी गयी कुछ पंक्तिया" जो शायद आज पुन: २०१४ में मेरे लिए फिर से उतनी ही मायने हो गयी है जितनी आज से १६ साल पहले वो मेरे लिए जवान थी.....

लक्ष्यहीन हो जायें उससे पहले हमें पहुँचना है ,
कर्महीन हो जायें उससे पहले हमें बदलना है। 
कांतिहीन हो जायें उससे पहले हमें चमकना है,
भावहीन हो जायें उससे पहले हमें निखरना है। 
दयाहीन हो जायें उससे पहले हमें सिसकना है ,
महत्वहीन हो जायें उससे पहले हमें निकलना है। 

खण्ड-खण्ड हो जायें उससे पहले हमें सिमटना है ,
प्राणहीन हो जायें उससे पहले हमें सम्भलना है। 
हाँ केवल बाते कहने से अब काम नहीं चलना है ,
संकल्पहीन हो जायें उससे पहले कर्म को करना है। 
पथहीन हो जायें उससे पहले नयी राह पर चलना है ,
नववर्ष के इन संकल्पो को संकल्पित हो करना है। 

आप सभी को नववर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाए …। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG