मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 22 जनवरी 2014

रेखाओं में भविष्य...

खींच कर दो-चार लाइन, और बनाकर एक चतुर्भुज। 
देखता हूँ  बाँचते है , वो ना जाने क्या-क्या भविष्य। 
वो जिन्हे खुद का अभी तक , है पता मालूम नहीं। 
वो बताते है आसमानी , शक्तियों के हमको पते। 
वो जो शायद पढ़ सके ना , श्याह-सफ़ेद अक्षरो को। 
वो शान से है पढ़ रहे , हाथों पर उभरी इबारतो को । 

वो जिन्हे शायद पता हो , कैसी होगी आज की रात।  
वो हमें बतला रहे है , जन्म जन्मान्तरो की बात । 
ना मै नहीं कहता कभी , विद्या ये पूरी पाखण्ड है। 
पर मै ये कहता मित्र , अब शेष इसके कुछ खंड है। 
अब ये है प्यारी धरोहर , अभिलेखो और स्मारको में।  
मत सजाओ तुम इसे  , निज पुरषार्थ की दीवार में । 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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