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सोमवार, 6 जनवरी 2014

एहसान फरामोश कठपुतलिया...

ये दौर है एहसान फरामोश कठपुतलियों का ?
या बागी होने को बेताब कठपुतलियों का ?

कल तक जिनके दामन में , मैंने फूल बरसाए थे। 
वो देखो आज बिछाते है , मेरी राहो में अब अंगारे। 
कल तक मेरी नूर से जो , रोशन हो बने सितारे थे।
वो देखो आज बुझाते है , मेरी राहों के ही उँजियारे।
कल तक जिनकी राहें मै , समतल करता चलता था। 
वो देखो आज बनाते है , अब मेरी राहों को ही पथरीले। 

कल तक मेरी साँसों से , जो राहत की साँसे पाते थे। 
वो देखो बोझिल करने को , तत्पर है मेरी साँसों को। 


कल तक मेरी नीयति से जो , अपनी शाख चलाते थे। 
वो देखो आज उठाने लगे , अब उंगली मेरे दामन पर। 

कल तक पाला था जिनको , अपनी ही अस्तीनो में।
वो देखो आज चुभोने को , हैं करते जहरीले दांतो को। 


क्या भूल गए वो मेरी क्षमता , या मद में आकर बौराये है ?
अपनी कठपुतली की डोरो को , शायद वो भाँफ ना पाये है ? 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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