मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 29 जुलाई 2013

मेरा पता..?

क्यों पूँछते हो तुम हवाओ से मेरे आशियाने को ,
गर पूंछना ही है तो पूँछो आंधियो से मेरा पता ।
ये हवाए जो तुम्हे मिलती हैं अक्सर राहों में ,
वो गुजराती है मेरे घर के कई कोसो से दूर ।
तो जाकर पूँछो तुम किसी आँधी से मेरा पता ,
वो आंधिया ही है जो गुजराती है मेरे दरवाजे से ।

हाँ अगर तुम्हे चाहिए मेरे घर के अन्दर का निशा ,
तो बता पाएंगे तुमको केवल बवंडर ही सही पता ।
क्योंकि अक्सर राहों पर,
 जब थक जाते है कई बवंडर ,
तब आकर सुस्ताते है वो,
 अक्सर मेरे घर के अन्दर ।
और जानना चाहो जो तुम मेरे स्वाभाव के बारे में ,
उसको जाकर पूँछो तुम कुछ गिने चुने तूफानों से ।

वो तूफां ही है जिनको आगे बढ़कर गले लगाता हूँ ,
पास बिठाकर उनको अपने दिल का हाल सुनाता हूँ ।
बाकी तो बस यूँ ही मेरे घर तक आते जाते है ,
कुछ दरवाजे के अन्दर कुछ बाहर ही रह जाते हैं ।
अन्दर जो भी आता है वो मेरा होकर जाता है ,
बाकी तो बस बेगानों सा बाहर ही रह जाता है । 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

शनिवार, 27 जुलाई 2013

समय...

समय बड़े बड़े घावो  को  भरने की सामर्थ रखता है ।
आज  जिन बातो से हम द्रवित एवं विचलित होते है कल वही बाते हमारे लिए सामान्य से भी कम महत्त्व की हो जाती है ।
यही मानव स्वभाव और संसार का नियम है ।

फिर चाहे वह सांसारिक रिश्ते हो या प्राणों से प्रिय प्रेम सम्बन्ध ,चाहे भौतिक सुख की चाह हो या मानसिक असंतुष्टिया ।
समय हर किसी के प्रति हमारी सोंच एवं एहसास को बदलता रहता है ।
और अंत में हमें उसके बिना या उसके साथ जीना सिखा ही देता है…!

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

सच ही कहा किसी ने...

सच ही कहा किसी ने , मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ।
रहती अधूरी हसरते , कुछ भी बेइंतिहा नहीं मिलता ।
ऐसा नही है इस जहाँ में , कभी कुछ भी नहीं मिलता ।
लेकिन तड़फते जिसके लिए , वो अक्सर नहीं मिलता ।
यहाँ अनगिनत हैं चाहते , और अनगिनत है ख्वाहिशे ।
इल्तिजा सबकी करें , इतना भी समय नहीं मिलता ।

जी रहे मन मार कर , जीना कहें कैसे इसे ।
जाना था जिस राह पर , इत्तदा नहीं मिलता ।
ऐसा  नहीं संग साथ में , कोई नहीं चलता ।
साथ जिसका चाहिए , वो हमराह नहीं मिलता ।
जब तक जहाँ में हम हैं , हमें खुदा नहीं मिलता ।
सच ही कहा किसी ने , संग जमी आसमां नहीं मिलता ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

रविवार, 14 जुलाई 2013

जो होना था वो हो ना सका..

जो होना था वो हो  ना सका , जो चाहा था वो मिला कहाँ ?
हम नियति नियंता बन बैठे , नियति को ना स्वीकार हुआ ?
छोटी सी नौका के बल पर , मझधार का वेग नापने को ।
हम प्रचण्ड नदी में थे उतरे , नाविक का भरोसा बस कर के ।
पर नियति को था स्वीकार नहीं , हम उसे चुनौती दे बैठें ।
धारा की दिशा पलट गयी , और नदी उलट कर बहने लगी ।

उस पार पहुँचना था हमको , इस पार ही नौका लौट पड़ी ।
मेरे मन की मन में रही , बस नियति की सब बात चली ।
इस बार चुनौती खाली गयी , अब मेरी चुनौती नियति ही है ।
जो मै भी नियति का हिस्सा हूँ , तो नियति ही मेरी धार बने ।
फिर से वो मुझे अवसर दे , फिर धारा नदी की बदले वो ।
इस बार बिना पतवार के मै , चाह रहा मझधार को मै ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

उड़ जहाज का पंछी..

आप यूँ दिल के करीब , जब नजर आने लगे ।
बात चुभी उनको ही पहले , जो दूर थे जाने लगे ।
शायद उन्हें था ये गुमान , हम बिखर जायेंगे यूँ ही ।
छोड़ कर दिल तोड़ कर , वो दूर जब जायेंगे यूँ ही ।
माना गलत थी सोंच पर , बात काफी हद तक सही थी ।
हमने ही उनसे कभी ये , कमजोरियाँ अपनी कही थी ।

पर गलत वो आँक बैठे , गलत चाल पर शह दे बैठे ।
बिखरा किला हमारा मगर , हम मात उन्हें ही दे बैठे ।
माना रिश्ते शतरंज नहीं , पर बाजी यहाँ भी लगती  है ।
शह और मात से भी आगे , कुछ बाते सदा ही चलती हैं ।
हाँ यहाँ सुधारा जा सकता , चाले गलत जो चल बैठे ।
ज्यों उड़ जहाज का पंछी , फिर जहाज पर जा बैठे ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG