मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

उड़ जहाज का पंछी..

आप यूँ दिल के करीब , जब नजर आने लगे ।
बात चुभी उनको ही पहले , जो दूर थे जाने लगे ।
शायद उन्हें था ये गुमान , हम बिखर जायेंगे यूँ ही ।
छोड़ कर दिल तोड़ कर , वो दूर जब जायेंगे यूँ ही ।
माना गलत थी सोंच पर , बात काफी हद तक सही थी ।
हमने ही उनसे कभी ये , कमजोरियाँ अपनी कही थी ।

पर गलत वो आँक बैठे , गलत चाल पर शह दे बैठे ।
बिखरा किला हमारा मगर , हम मात उन्हें ही दे बैठे ।
माना रिश्ते शतरंज नहीं , पर बाजी यहाँ भी लगती  है ।
शह और मात से भी आगे , कुछ बाते सदा ही चलती हैं ।
हाँ यहाँ सुधारा जा सकता , चाले गलत जो चल बैठे ।
ज्यों उड़ जहाज का पंछी , फिर जहाज पर जा बैठे ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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