मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 29 जुलाई 2013

मेरा पता..?

क्यों पूँछते हो तुम हवाओ से मेरे आशियाने को ,
गर पूंछना ही है तो पूँछो आंधियो से मेरा पता ।
ये हवाए जो तुम्हे मिलती हैं अक्सर राहों में ,
वो गुजराती है मेरे घर के कई कोसो से दूर ।
तो जाकर पूँछो तुम किसी आँधी से मेरा पता ,
वो आंधिया ही है जो गुजराती है मेरे दरवाजे से ।

हाँ अगर तुम्हे चाहिए मेरे घर के अन्दर का निशा ,
तो बता पाएंगे तुमको केवल बवंडर ही सही पता ।
क्योंकि अक्सर राहों पर,
 जब थक जाते है कई बवंडर ,
तब आकर सुस्ताते है वो,
 अक्सर मेरे घर के अन्दर ।
और जानना चाहो जो तुम मेरे स्वाभाव के बारे में ,
उसको जाकर पूँछो तुम कुछ गिने चुने तूफानों से ।

वो तूफां ही है जिनको आगे बढ़कर गले लगाता हूँ ,
पास बिठाकर उनको अपने दिल का हाल सुनाता हूँ ।
बाकी तो बस यूँ ही मेरे घर तक आते जाते है ,
कुछ दरवाजे के अन्दर कुछ बाहर ही रह जाते हैं ।
अन्दर जो भी आता है वो मेरा होकर जाता है ,
बाकी तो बस बेगानों सा बाहर ही रह जाता है । 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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