मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

सच ही कहा किसी ने...

सच ही कहा किसी ने , मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ।
रहती अधूरी हसरते , कुछ भी बेइंतिहा नहीं मिलता ।
ऐसा नही है इस जहाँ में , कभी कुछ भी नहीं मिलता ।
लेकिन तड़फते जिसके लिए , वो अक्सर नहीं मिलता ।
यहाँ अनगिनत हैं चाहते , और अनगिनत है ख्वाहिशे ।
इल्तिजा सबकी करें , इतना भी समय नहीं मिलता ।

जी रहे मन मार कर , जीना कहें कैसे इसे ।
जाना था जिस राह पर , इत्तदा नहीं मिलता ।
ऐसा  नहीं संग साथ में , कोई नहीं चलता ।
साथ जिसका चाहिए , वो हमराह नहीं मिलता ।
जब तक जहाँ में हम हैं , हमें खुदा नहीं मिलता ।
सच ही कहा किसी ने , संग जमी आसमां नहीं मिलता ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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