मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 28 मार्च 2011

रिश्ते...नाते

'अनंत' तुम्हे समझाता हूँ , 
थोड़ा सा चालाक बनो ।
है दुनिया अपने मतलब की ,
ज्यादा न बेताब बनो ।
यहाँ खून के रिश्ते भी ,
अपना मतलब ढोते हैं ।
बिना किसी मतलब के यहाँ ,
कब कोई रिश्ते होते हैं ।
है हाल बुरा सम्बन्धों  का , 
नातों को सब भूले हैं ।
ठोक-बजाकर,मोल-भाव कर ,
रिश्तों को सब जीते हैं ।
दिल में कुछ चेहरे पर कुछ ,
भाव सदा सब रखते हैं ।
भूले-भटके गलती से ही ,
कुछ रिश्ते सच्चे होते हैं ।
वो भाग्यवान होते हैं जिनको ,
सच्चे रिश्ते मिलते हैं ।
रिश्तो के बाजार में जिनको ,
काँच में हीरे मिलते हैं ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

सत्य एक ही होता है.........

किसी ने सच ही कहा है .........
अगर है हसरत मंजिल की , खोज है शौख तेरी तो ।
जिधर चाहो उधर जाओ , अंत में फिर मुझको पाओ।
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और मेरे अपने शब्दों में ..

"राह अलग हो सकती है...
                                          काल अलग हो सकता है...
शब्द अलग हो सकते हैं...
                                          भाषा का अंतर हो सकता है...
मान अलग हो सकते हैं...
                                          परिमाण अलग हो सकते है...
विश्वास अगर सच्चा है तो...
                                           सत्य एक ही होता है............"

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

बुधवार, 23 मार्च 2011

चिरंतर..

जाने कब मै प्रश्नों का ,
पाउँगा कोई उत्तर ?
जाने कब मेरे प्रश्नों के ,
लायक होंगे कुछ उत्तर ??
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वो शायद एक भूँख  है ,
जो अक्सर सर उठा लेती है ।
या फिर वो अतृप्त प्यास है ,
जो पूरी तरह बुझती नहीं है ।

यूं तो सब कुछ ठीक ही ,
महसूस होता है सदा ।
पर कहीं किसी कोने से ,
डर लगता मुझको सदा ।

न जाने कब किस मोड़ पर ,
वह फिर उठा ले अपना सर ।
फिर उससे निपटने के लिए ,
मुझको भटकना पड़े किधर ।

साथ ही कुछ सोच कर ,
मै डरता हूँ उनके लिए ।
वो जिन्हें देना है पड़ता  ,
निज बलिदान मेरे लिए ।

 मेरा क्या मेरे लिए ये ,
बन गयी अब आदत है ।
सोंचता हूँ अक्सर अकेला ,
क्या यह मेरी हवस है ?

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सोमवार, 21 मार्च 2011

रोंको अपने अश्रु नयन में..

रोंको अपने अश्रु नयन में ,
भूले से बाहर ना ढलके ।
मोल अश्रु के परख सके ,
अब नहीं पारखी जग में मिलते ।

जो मूल्य जानने वाला ना हो ,
हीरे को कांच समझता है ।
कांच के टुकड़ो को सहेज कर ,
हीरा जैसा रखता है ।

जब तक अश्रु नयन में होते ,
मोती से अनमोल वो होते ।
एक बार जो बाहर ढलके ,
मिटटी में जाकर वो मिलते ।

ज्यों ही तुम हो इन्हें गिरते ,
ये गिरा तुम्हे भी देते हैं ।
अपने निष्कासन के बदले ,
सब राज तुम्हारा कहते है ।

आँखों में बनते ये मोती ,
जब-जब बाहर ढलते हैं ।
अंतरमन की कातरता को ,
जग में प्रगट कर देते हैं ।

बाहर निकले अश्रु सदा ,
व्यथा सार्वजनिक कर जाते हैं ।
औरों के परिहास का पात्र ,
पीछे जग में हमें बनाते हैं ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

गुरुवार, 17 मार्च 2011

आज और अब तक का बासी, गिद्ध-वाणी-3

नमस्कार

अनंत अपार असीम आकाश की गिद्ध-वाणी में आप सभी विचरण कर रहे प्राणियों का स्वागत है....

आज की गिद्ध वाणी में अब आप के समक्ष समाचार जगत से आज और अब तक  का बासी पर गिद्ध दृष्टि से देख कर गिद्ध उवाच प्रस्तुत है....

बासी खबर : राजा के करीबी बाशा की रहस्यमय मौत।
गिद्ध उवाच : शायद यह एक शुरवात है, मामलों को अंत तक न पहुचने देने का  ।

बासी खबर : चीन की सैन्य ताकत से भारत सतर्क
गिद्ध उवाच : हाँ और कुछ नहीं तो हम जागते रहो तो चिल्ला ही सकते हैं ।

बासी खबर :  सरकार को अदालत की फटकार
गिद्ध उवाच : सरकार को फटकार चिकने घड़े पर पानी गिराने जैसा है ।

बासी खबर : साझा चुनाव चिह्न नहीं-सुप्रीम कोर्ट
गिद्ध उवाच : क्यों भाई , जब साझा सरकार हो सकती है तो चुनाव चिन्ह क्यों नहीं ?

बासी खबर : 2जी मामला, राजा पर लगेगा अभियोग
गिद्ध उवाच : पक्का ना ! कहीं चुनाव पूर्व और चुनाव बाद के समीकरणों से इरादा ना बदल जाय।


बासी खबर : हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के प्रयास
गिद्ध उवाच : वाह जी आज तक पूरे भारत की तो भाषा बना नहीं पाए , चले संयुक्त राष्ट्र का सपना देखने ।


बासी खबर : भारत में सुनामी का खतरा नहीं: सरकार।
गिद्ध उवाच : यह गारंटी अन्य सरकारी वायदों जैसी ही है , जब सुनामी आएगी सब बहा ले जाएगी  ।


बासी खबर : चरम पर है क्रिकेट का बुखार।
गिद्ध उवाच : चलो इससे कुछ दिनों तक भ्रस्टाचार के बुखार से जनता का ध्यान हटा रहेगा ।


बासी खबर : जापान को मिली थी चेतावनी-विकीलीक्स।
गिद्ध उवाच : मिली होगी चेतावनी , मगर सरकारे अपने तरीके से ही काम करती हैं ।

तो इसी के साथ अगली गिद्ध वाणी के प्रकाशन तक गिद्ध हस्त प्रणाम..

बुधवार, 2 मार्च 2011

आदर्श और हकीकत ?

जीवन के कुछ आदर्शों को,
प्रतिदिन ही मै जीता हूँ।
उनके खातिर मर-मिटने को,
तत्पर भी नित रहता हूँ।
        यूँ तो आज के दुनिया में,
        आदर्श हकीकत रहे नहीं।
        दो-चार पलों के खातिर ही,
        कोरी बाते बने सभी।
                 लेकिन जैसे दुनिया में,
                 कुछ चीजें होती हैं पाषाण।
                 वैसे ही पाषाण युगीन,
                 कुछ आदर्श मेरे हैं बलवान।



यक्ष प्रश्न यह उठता है,
क्या सचमुच उनको जीता हूँ ।
या मै भी कोरे आदर्शों की,
मदिरा ही नित पीता हूँ ।
        यह प्रश्न बहुत ही रुखा है,
        जो दिल को दहला जाता है।
        लेकिन शायद अंतर्मन की,
        कहीं बात मेरी कह जाता है।
                हाँ अपने आदर्शों के प्रति,
                 मै सदा सच्चा रहता हूँ।
                 लेकिन शायद भूले-भटके,
                 कहीं मै कच्चा रहता हूँ।
यह अलग प्रश्न है स्वयं ही मै,
स्वयं को करता हूँ अभियोजित।
फिर बनकर स्वयं का अधिवक्ता,
रक्षा करता हूँ निज व्यक्तित्व।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG