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बुधवार, 2 मार्च 2011

आदर्श और हकीकत ?

जीवन के कुछ आदर्शों को,
प्रतिदिन ही मै जीता हूँ।
उनके खातिर मर-मिटने को,
तत्पर भी नित रहता हूँ।
        यूँ तो आज के दुनिया में,
        आदर्श हकीकत रहे नहीं।
        दो-चार पलों के खातिर ही,
        कोरी बाते बने सभी।
                 लेकिन जैसे दुनिया में,
                 कुछ चीजें होती हैं पाषाण।
                 वैसे ही पाषाण युगीन,
                 कुछ आदर्श मेरे हैं बलवान।



यक्ष प्रश्न यह उठता है,
क्या सचमुच उनको जीता हूँ ।
या मै भी कोरे आदर्शों की,
मदिरा ही नित पीता हूँ ।
        यह प्रश्न बहुत ही रुखा है,
        जो दिल को दहला जाता है।
        लेकिन शायद अंतर्मन की,
        कहीं बात मेरी कह जाता है।
                हाँ अपने आदर्शों के प्रति,
                 मै सदा सच्चा रहता हूँ।
                 लेकिन शायद भूले-भटके,
                 कहीं मै कच्चा रहता हूँ।
यह अलग प्रश्न है स्वयं ही मै,
स्वयं को करता हूँ अभियोजित।
फिर बनकर स्वयं का अधिवक्ता,
रक्षा करता हूँ निज व्यक्तित्व।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. अपने आदर्शो पर चलना ही बडी बात है

    फिर बनकर स्वंय का अधिवक्ता
    रक्षा करता हूँ निज व्यक्तित्व

    सुन्दर एवं सार्थक

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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