मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 23 मार्च 2011

चिरंतर..

जाने कब मै प्रश्नों का ,
पाउँगा कोई उत्तर ?
जाने कब मेरे प्रश्नों के ,
लायक होंगे कुछ उत्तर ??
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वो शायद एक भूँख  है ,
जो अक्सर सर उठा लेती है ।
या फिर वो अतृप्त प्यास है ,
जो पूरी तरह बुझती नहीं है ।

यूं तो सब कुछ ठीक ही ,
महसूस होता है सदा ।
पर कहीं किसी कोने से ,
डर लगता मुझको सदा ।

न जाने कब किस मोड़ पर ,
वह फिर उठा ले अपना सर ।
फिर उससे निपटने के लिए ,
मुझको भटकना पड़े किधर ।

साथ ही कुछ सोच कर ,
मै डरता हूँ उनके लिए ।
वो जिन्हें देना है पड़ता  ,
निज बलिदान मेरे लिए ।

 मेरा क्या मेरे लिए ये ,
बन गयी अब आदत है ।
सोंचता हूँ अक्सर अकेला ,
क्या यह मेरी हवस है ?

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रचना है

    पर ये चिरंतर क्या होता है?

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  2. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , हिंदी ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सार्थक है. निश्चित रूप से आप हिंदी लेखन को नया आयाम देंगे.
    हिंदी ब्लॉग लेखको को संगठित करने व हिंदी को बढ़ावा देने के लिए "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की stha आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच

    जवाब देंहटाएं
  3. होली की बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है उतने ही सुन्दर आपके विचार है जो सोचने पर मजबूर करदेते है
    कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
    धन्यवाद्

    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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