मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हाहाकार मचा है जग में..

हाहाकार मचा है जग में , चारो तरफ अँधेरा है ।
चाँद सो रहा अपने घर में , कोसो दूर सबेरा है ।
हर एक पल यूँ बीत रहे , जैसे मास गुजरते हैं ।
लम्हों की बात ही क्या , वो वर्षो जैसे लगते हैं ।

सिसक रहीं है कलियाँ सारी , फूल सभी मुरझाये हैं ।
डालो का कहना ही क्या , पत्तो पर काँटे उग आये हैं ।
ताल तलैया सूख गयी हैं , नदियां रेत उड़ती है ।
सागर का अब हाल देख , बादल तक घबड़ाते हैं ।

खाली हो गए खेत सभी , खलिहानों में है आग लगी ।
गाँवों के भी आँगन में , नव-बधुओं की है चिता सजी ।
सत्य अहिंसा की बोली , अब डगर डगर पर लगती है ।
रक्षक ही भक्षक बन कर , अब चला लूटने डोली है ।

कुछ खद्दरधारी नागों के संग , वर्दीधारी साँप मिलें हैं ।
न्यायपालिका के अन्दर , देखो अजगर पहुँच गए हैं ।
जिसको भी ये डस लेते हैं , मृत्यु नहीं वो पाता है ।
बन कर वो भी दानव दलय , अजर यहाँ हो जाता है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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