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मंगलवार, 22 जुलाई 2014

आखिर कब तक,,

बाँटते-बाँटते खंडित हो गया, खंड खंड में अखंड भारत ।
अब भी क्या तुम चाह रहे, और खंडित हो जाए भारत ?
हम कब कहते कोई धर्म सम्प्रदाय, होता है सम्पूर्ण बुरा ।
हम कब कहते एकाधिकार हो, भारत पर केवल अपना ?
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, हैं भारत में सब भाई-भाई ।
जो भी माने भारत माँ को , उससे कब है कोई लड़ाई ?

पर इसका यह अर्थ नहीं , हम बस बँटवारा करते जाए ।
क्या आस्तीन में पालें साँप, सर ना उनके कुँचले जाए ?
मानवता आदर्श हमारा , भाई चारा हमको अति प्यारा 
पर क्या उसके खातिर यूँ ही , बाँटने दें भारत हम प्यारा ?
आखिर कब तक खामोशी से, चुपचाप तमाशा देखा जाए ।
क्यों ना खोदकर जड़ दुश्मन की, मठ्ठा उसमे डाला जाए ?

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG 

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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