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गुरुवार, 5 जून 2014

प्रकृति के नियम और हम..

अम्बर बरसै धरती भींजे , नदिया तब उतराए । 
सहेज समेट कर इस जल को , सागर में मिल जाए । 
सागर से फिर बादल बन कर , अम्बर को मिल जाए। 
इसी तरह से चलती रहती , प्रकृति की सब क्रीडाये। 

आओ हम भी अब बन जाए , प्रकृति के हमराही। 
एक दूजे पर प्रेम लुटाकर , कहलाये प्रेम पुजारी। 
जितना प्रेम लुटाएँगे हम , उससे ज्यादा पाएंगे। 
जितना प्रेम हम पाएंगे , वो सब तुमको लौटाएंगे।

अगर कहीं रुक गया नियम ये , धरती बंजर हो जायेगी। 
सूखेंगी सब नदिया सारी , सागर भी मिट जायेंगे। 
प्रेम की लय जो टूट गयी तो , तुम भी चैन ना पाओगे। 
मेरे जैसा साथी कोई , इस जग में फिर ना पाओगे। 

हमको अपना क्या कहना , बिन जल के ही मर जाएंगे। 
तेरे बिना इस धरती पर , कहीं चैन ना पाएंगे। 
तो फिर आओ करे प्रयत्न , नियम सदा ये अटल रहे। 
एक दूजे की खातिर हम , भावों से सदा भरे रहें। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG 


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