मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 19 जून 2013

सबकी वही कहानी...

चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के महल में ,
लोभ, लिप्सा,वासना ही सदा पलती रही ।
काम, क्रोध, मद, लोभ ही ,
इस महल के शहंशाह ।
चौपड़ की बिसात बिछाकर ,
वो बुलाते सबको यहाँ ।

चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भँवर  में ,
डूब ही जाते सभी , बच कर निकालता कौन यहाँ ?
स्वार्थ और अज्ञानता का ,
हर तरफ दलदल यहाँ ।
पाँव टिकाओ तो कहाँ पर ,
अंधी अन्तर्वासना यहाँ ।

चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भ्रमजाल में,
है भटकना सभी को , माया ठगनी है यहाँ ।
सिर पुरातन काल से ही ,
कौन बच पाया कहो ?
माया मोह के जाल से ,
कौन निकल पाया कहो ?  

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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