क्या लिखू क्या ना लिखूँ , कुछ समझ पाता नहीं ।
भाव हैं मन में बहुत , पर उन्हें समेट पाता नहीं ।
कुछ भाव हैं बस प्यार के , कुछ है तेरे अहंकार के ।
कुछ भाव तुझसे लगाव के, कुछ रिश्तो के बिखराव के ।
कुछ भाव हैं निर्द्वन्द से , कुछ उलझे है अंतर्द्वंद से ।
कुछ मुस्कुराहट ला रहे , कुछ फिर दुखी कर जा रहे ।
भाव हैं मन में बहुत , पर उन्हें समेट पाता नहीं ।
कुछ भाव हैं बस प्यार के , कुछ है तेरे अहंकार के ।
कुछ भाव तुझसे लगाव के, कुछ रिश्तो के बिखराव के ।
कुछ भाव हैं निर्द्वन्द से , कुछ उलझे है अंतर्द्वंद से ।
कुछ मुस्कुराहट ला रहे , कुछ फिर दुखी कर जा रहे ।
क्या लिखूँ क्या ना लिखूँ , चलो तुम ही बताओ मै क्या लिखूँ ।
वो बसंत ऋतु की बात लिखूँ, या ये पतझड़ का बिखराव लिखूँ ।
गैरों का बनना अपना लिखूँ , या अपनो का बनना गैर लिखूँ ।
है भूल-भुलैया भावों की , कोई राह मिले तब तो मै लिखूँ ।
यहाँ अपना पराया कोई नहीं , फिर बात कहो मै किसकी लिखूँ ।
मकड़जाल में उलझा मन , चलो उलझन को सुलझाना लिखूँ ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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