मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 7 मई 2013

रिश्तो की डोर...

रिश्तो की डोर कोई , उलझ गयी ऐसी ,
ना तोडे से टूटे , ना सुलझाई जाए ही..

रिश्ता भी ऐसा , जिसे दिल ही निभाए ,
ना छोड़े से छूटे , ना अपनाया जाए ही.. 

सांप और छछुंदर सी , हो गयी स्थिति ,
ना निगल ही सके , ना उगला जाए ही..  

रिश्तो की डोर जब , उलझ जाए ऐसी ,
कितना ही बचाओ , गाँठ लग जाए ही..

जितना ही समझो , ना बात समझ आये ,
सुलझाते सुलझाते , बात उलझ जाए ही..

अटक गयी बात जो , वो दिल से ना जाय ,
कितना ही भुलाओ , फिर से याद आये ही..

गैर कोई हो तो , कुछ बतलाया जाए भी ,
अपनो को यारो , ना कुछ कहा जाए ही..

रिश्तो की डोर एक , उलझ गयी ऐसी ,
ना तोडे से टूटे , ना सुलझाई जाए ही..

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. रिश्ते होते ही हैं ऐसे उलझे ,मर मर के निभाना पड़ता है
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'

    जवाब देंहटाएं

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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