मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 10 मई 2013

नयी अभिलाषा...

तन प्यासा है मन प्यासा है , 
                     जीवन को पाने की आशा है ।
अब तक जो कुछ पाया है , 
                     वो प्यास ना मेरी मिटा सका है ।
केवल अधरों को गीला कर , 
                     मेरी आस को ही बस जगा सका ।

अब चाह रहा मै वो अमृत , 
                     जो जीवन को मेरे तृप्त करा दे ।
मुझको मेरी अभिलाषा से , 
                     जीवन भर को मुक्त करा दे ।
प्यास बुझा कर तन मन की , 
                     मुझको मेरी दिशा दिखा दे ।

वर्ना जब तक मन प्यासा है , 
                     तन को प्यासा रहना ही है ।
या जब तक तन प्यासा है , 
                     मन में आनी नयी अभिलाषा है ।
यूँ जब तक तन मन प्यासा है , 
                     फिर जीवन पाने की आशा है ।

अब चाह रहा मै वो अमृत , 
                     जो कण्ठ को मेरे तृप्त करा दे ।
तन मन की मेरी प्यास बुझाकर , 
                     जीवन भर को मुक्त करा दे ।
श्याम रंग में मुझे डुबोकर , 
                     अब तो मेरे ईश्वर से मुझे  मिला दे ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)