मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 5 मई 2013

प्यासा सारा जीवन है..

धरती प्यासी, नदिया प्यासी , प्यासा सारा अम्बर है ।
तन प्यासा है , मन प्यासा है , प्यासा सारा जीवन है ।
प्यास लगे जब धरती को तो , नदियाँ उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब नदियों को तो , अम्बर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब अम्बर को तो , सागर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब सागर को तो , उसकी प्यास को कौन बुझाये ?

प्यास लगे जब जीवन को , तन है उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब तन को भी , मन है उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब मन को , उसकी प्यास को कौन बुझाये ?
सोंच रहा हूँ कैसे बुझे अब , प्यास लगी जो सागर को ।
सोंच रहा हूँ कैसे बुझे अब , प्यास लगी जो मेरे मन को ।
शायद कोई आकर बुझाये , अपने प्रेम की गागर से ।

प्रेम की गागर से जो छलकी , अमृत की दो चार भी बूंदे ।
पीकर तृप्त हो जायेगा ,  मन मेरा और सागर भी । 
तो आओ खोजे हम उसको , जिसके पास है प्रेम की गागर ।
चाहे उसकी खातिर हमको , बनना पड़े स्वयं प्रेम का सागर ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर प्रस्तुति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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