मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 5 मई 2013

अब भी है समय...

जीवन में कभी कभी , कुछ पल ऐसे आते है ।
जहाँ हम प्रायः: अपनी , मर्यादाओ को भूल जाते है ।
और भुलाकर मर्यादाओ को , जो कुछ भी हम करते है ।
आज नहीं तो कल हम , कही न कही उसकी भरपाई करते है ।
और अगर हमको कभी , होता नहीं गलती का एहसास ।
तो किसी अपने के दिल पर , निश्चित होता है बज्रपात ।

तो 

अब भी है समय , संभल जा ओ राहगीर ।
फिर ने नए भरोसे को , बना तू आस-पास ।
वो गलतिया तुम्हारी , जो तुमने की थी कभी ।
गर हो सके मानो , तुम जाकर उसके पास ।
जिसको लगी थी चोट , मूर्खता से त्तुम्हारी ।
शायद इसी तरह से , फिर बने नया विशवास ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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