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शुक्रवार, 3 मई 2013

विशवास...

जब कभी होगी जरूरत , फिर नए विशवास  की ।
जिन्दगी को उलझनों के , जाल में हम डाल देंगे ।

उलझनों के जाल से , जब निकल कर आयेंगे ।
एक नए विशवास का , आधार लेकर आयेंगे ।   

जब कभी होगी परिक्षा , फिर मेरे विशवास की ।
जिन्दगी खुद ही रचेगी , नीव नए निष्ठाओ की ।

कौन कहता है कि जलता , स्वर्ण भी है आग  में ।
वो सदा तपकर निखरता , आग  के ही खाक से ।

और अगर उलझने ही , ना घेरे हमारी राहो को ।
तो करे क्यों हम इकट्ठा , इतनी सब निष्ठाओ को ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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