मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

मन मेरा खाली-खाली है...

एक जाम तो पीने दो मुझको , मन मेरा खाली-खाली है ।
बेगानों सा लगता ये जग , यह रोज मनाता दिवाली है ।
मेरी समाधि मिटाकर के , वो चाह रहे हैं भवन बनाना ।
तुम उन्हें बता दो जाकर के , है शेष मुझे जग से जाना ।
पैमानों से क्या नाप रहे , बस जी भरकर मुझे पीने दो ।
मत रोंको टोंको मुझको , मुझे आज हकीकत कहने दो ।

जो नोंच रहे बेदर्दी से , अभी मेरे मण्डप के फूलो को ।
तुम उन्हें बता दो जाकर , मेरी डोली उठनी बाकी है ।
मेरे जाते ही मेरा सब कुछ , उनका ही होने वाला है ।
मयखाना देख मै ठहर गया , मुझको आगे जाना है ।
अपनी ही बगिया से क्यों , नफ़रत करता माली है ।
एक जाम पिला दो मुझको, मन मेरा खाली-खाली है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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