मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 7 अप्रैल 2013

भूँख है एक आइना ..

इन्सान की जिंदगी का ,भूँख  है एक आइना  ।
भूँख  चाहे पेट  की , या कहो उसे जिस्म की ।

भूँख  हो धन दौलत की , या फिर दर्शन की ।
भूँख  हो चाहे युद्ध की , या भूँख हो शक्ति की ।

भूँख बदल देती यहाँ , इन्सान की सोंच को ।
भूँख बना देती यहाँ , हैवान इंसानियत को ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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