मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

सन्नाटा...

रात  का सन्नाटा ख़ामोशी से , जब चारो तरफ पसरता है ।
बस्तियों को सुनसान कर , वो जंगलो को आबाद  है ।
भेड़ बकरियों की खोज में , भेड़ियों  का दिल मचलता है ।
उनके पीछे पीछे ही कहीं , गीधड़ो  का झुण्ड भी चलता है ।
पेट भले ही भर जाये , मन नहीं कभी भी भरता है ।
इन्सान के अन्दर छुपा , शैतान कभी नही मरता है । 
रात के सन्नाटे का , यह फायदा भी होता है ।
सफेद्पोसो के सब , करतूतों को छुपा लेता है ।
जुल्म और बेईमानी की , रंगत को बढ़ा देता है ।
कमजोर और कायरो को , बहादुर मर्द बना देता है ।
बेबस लाचार शिकारों को , दुल्हन सा सजा देता है ।
मन में छुपी कुंठाओ को , भरपूर ये मजा देता है । 
रात के सन्नाटे का , अपना ही नशा होता है ।
भीड़ के सूरमाओ की , रोंगटों को कंपा देता है ।
अपनी ही परछाहियों से , बहुतो को डरा देता है ।
भेड़ियों और गीधडों के , झुण्ड ये बना देता है ।
बदला  लेने वालो को , मौका ये दिला देता है ।
जुल्म करने वालों के , हस्तियों को मिटा  देता है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


1 टिप्पणी:

  1. Ramsarswat.blogspot.com
    आप मेरे ईस ब्लोग को अपने ब्लोग का हिस्सा बनाये

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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