मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कुछ समझ आता नहीं...

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
नींद भी आती नहीं ,
चैन भी आता नहीं ।

सोंचता था सब निबटाकर , चैन से मै सो सकूँगा ।
जो था होना हो चुका , अब चैन से मै जी सकूँगा ।
पर वही लफड़ा पुराना , फिर वही गूँजे तराना ।
ना नियम ना कायदे , बस वही रोना और गाना ।

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
कब कहाँ करना है क्या , 
कुछ भी पता चल पाता नहीं ।

बीत रहे दिन रात भले , पर नहीं लगता कुछ बदला ।
दिन महीने साल बीते , पर नहीं हालात कुछ बदला ।
दर चुके कितनी ही दाल , पर नहीं गलती है दाल ।
अब तो लगने ये लगा , जैसे हो मकड़ी का जाल ।

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
सांप छछुंदर की है स्थित ,
कुछ भी दिल को भाता नही ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. मंगलवार 07/05/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद .... !!

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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