मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 3 मार्च 2013

अनकही....

कहने को कोई बात नहीं , फिर भी तुमसे कुछ कहना है ।
तुम सुनो या कर लो कान बंद , कुछ बात तुम्ही से करना है ।
यूँ पहले भी मैंने तुमसे शायद , कहे कई अफ़साने है ।
पर आज तो तुमसे कहना है , वो बिलकुल नए फ़साने है ।

देखो कितना समय है बीता , हम दोनों को चुप-चुप रहते ।
मन के भावों को मन में रखकर , मूक इशारो में बाते करते ।
कुछ लोक लाज की बाते थी , कुछ हम दोनों सकुचाते थे ।
कुछ बात जुबां तक आकर भी , हम कहे बिना रह जाते थे ।

है याद मुझे अब भी प्रियतम , वो मधुर मिलन की सारी बाते ।
बोल रहा था मै अविरल , अविचल हो तुम मुझे सुनती थी ।
शब्द ख़त्म हो जाने पर भी , नयनो में बाते होती रही ।
बिना कहे एक शब्द भी ,  तुम दिल की बाते कहती रही ।

तो आवो मिलकर हम दोनों , फिर से  रचे एक नयी कहानी ।
अब तक के सारे सुख-दुःख , फिर से कहे हम अपनी जुबानी ।
लोक लाज की बाते छोड़ , और भुला कर जग के बंधन को ।
आवो कह दे अपनी बाते सब , शब्द दे दिल के स्पंदन को ।


        
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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