मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

मायाजाल..

जीवन को समझाना चाहो तो , बूझो पहेली जीवन की ।
फिर मौत भले आ जाए मगर , डोर ना टूटे जीवन की ।
वो कौन यहाँ जिसने आकर , नीव रखा था इस जग का ।
सुनसान वीरानी धरती पर , अंकुर फोड़ा था जीवन का ।
कहाँ से लाया वो तारे , किससे उसने गगन बनाया ।
कैसे बिना सहारे के , ये धरती सूरज चाँद टिकाया ।

कहाँ ओर है इस जग का , और कहाँ छोर होगा इसका ।
ये सारी दुनिया कैसे बनी , कोई राज बताएगा इसका ।
कहाँ से आते हैं हम सब , फिर कहाँ अंत में जाते सब ।
जीवन मरण के चक्रव्यूह से , निकल नहीं क्यों पाते हम ।
जिसने सारे जग को बनाया , किसने उसको ईश्वर बनाया ।
किसने कैसे और किस कारण , ये सारा मायाजाल रचाया ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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