जीवन को समझाना चाहो तो , बूझो पहेली जीवन की ।
फिर मौत भले आ जाए मगर , डोर ना टूटे जीवन की ।
वो कौन यहाँ जिसने आकर , नीव रखा था इस जग का ।
सुनसान वीरानी धरती पर , अंकुर फोड़ा था जीवन का ।
कहाँ से लाया वो तारे , किससे उसने गगन बनाया ।
कैसे बिना सहारे के , ये धरती सूरज चाँद टिकाया ।
कहाँ ओर है इस जग का , और कहाँ छोर होगा इसका ।ये सारी दुनिया कैसे बनी , कोई राज बताएगा इसका ।कहाँ से आते हैं हम सब , फिर कहाँ अंत में जाते सब ।जीवन मरण के चक्रव्यूह से , निकल नहीं क्यों पाते हम ।जिसने सारे जग को बनाया , किसने उसको ईश्वर बनाया ।किसने कैसे और किस कारण , ये सारा मायाजाल रचाया ।
"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
मेरी डायरी के पन्ने....
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शुक्रवार, 22 मार्च 2013
मायाजाल..
1 टिप्पणी:
स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)
सब है अनबुझे पहेलियाँ ,जान ने की कौतुहल है जी
जवाब देंहटाएंसोचिये मंथन कीजिये,बुझ जाये ,बताइए विवेक जी
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