मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 14 अक्टूबर 2012

कैसे दिल की बात कहूँ..

चाह रहा हूँ जो कहना , क्यों वो शब्द नहीं मै पाता  हूँ ।
निज भावों को बिना व्यक्त किये , अतृप सदा रह जाता हूँ ।
क्या करूँ कहूँ मै  कैसे वो , जो दिल में दबा रह जाता है ।
यूँ ही उम्र बीतती जाती है , मन उसे समझ नहीं पाता है ।
चलते चलते देर हो गयी , अब वापस जाया नहीं जाता है ।
क्या सोंचेगे दुनियावाले , ये सोंच के भी मन भरमाता है ।

बुद्धि नहीं देती है साथ , वह दिल को समझे कहाँ बिसात ।
अंतरतम कर सके प्रगट , कोरे शब्दों में है नहीं बिसात ।
प्रतिपल सदा सरोवर ही , बनकर रहने का है अभिशाप ।
नदी बने बिना घुट-घुट कर , मर जाने का शायद है श्राप ।
रुंधे कंठ बेकल नयनो में , है भटक रही अश्रु की धारा ।
दोष किसी को मै  दूँ कैसे , शायद अवरोध भी मुझको प्यारा ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)