मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 5 जून 2012

भूँख..

कौन  कहता है क़ि उसे भूँख नहीं लगती ,
रोटी कपड़ा और मकान की ।
जायज या नाजायज प्यार और रिस्तो की ,
उचित या अनुचित धन और सम्पत्ति की ।
पद बैभव और उसके आडम्बर की ,
स्त्री, पुरुष या दोनों के रूप आकर्षण की ।

कभी न्याय तो कभी अन्याय करने की ,
औरो के मुख से अपनी बड़ाई सुनाने की ।
ताकत को अपने मुठ्ठी में रखने की ,
औरो को भेड़ो सा हाँक कर ले चलने की ।
सिद्धांतो का सच्चा अनुगामी दिखने की ,
नियमो को  चौखट के बाहर ही रखने की ।

कौन कहता है उसे भूंख नहीं लगती ,
मनुष्यगत स्वभावो की हूँक नहीं उठती ।
परे है वो मानवीय कमजोरियों से ,
और करता नहीं वो दिखावा कभी भी ।
अगर है कोई हमें भी बताओ ,
उस झूँठ के पुलिंदे से हमें भी मिलाओ ।

हमें भी लगाती है कई बार भूँख ये ,
अन्दर हो कुछ पर बाहर दिखे कुछ वो ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. ऐसा तो कोई इंसान हो ही नहीं सकता जिसे यह भूंख ना हो क्यूंकि यह तो मानव व्यवहार है। जो इसे स्वाकार नहीं सकता वो मजह आडंबर है। सार्थक रचना
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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