प्रिये सच क्या है मुझे पता नहीं,
पर मेरे दिल से माना सदा यही ।
तुम्हे एहसास तो होता होगा ही ,
क्या कहना चाहा मैने तुमसे सदा ।
कभी कहा उसे मैने शब्दों में ,
कभी समझाया तुम्हे संकेतो मे ।
कभी स्वयं रूठा पर तुम्हे मनाया ,
कभी तुम रुठे और मै झल्लाया हूँ ।
क्या कहना चाहा मैने तुमसे सदा ।
कभी कहा उसे मैने शब्दों में ,
कभी समझाया तुम्हे संकेतो मे ।
कभी कहकर भी वो कहा नहीं ,
जो कहने को व्याकुल रहा अभी ।
जो कहने को व्याकुल रहा अभी ।
कभी तुम्हे सुनाया कोई कहानी ,
कभी पहेलियो में उलझाया हूँ ।
कभी कह्कर भी चुप रहता हूँ ,
कभी प्यार मे क्रोध जताया हूँ ।
कभी पहेलियो में उलझाया हूँ ।
कभी कह्कर भी चुप रहता हूँ ,
कभी प्यार मे क्रोध जताया हूँ ।
कभी स्वयं रूठा पर तुम्हे मनाया ,
कभी तुम रुठे और मै झल्लाया हूँ ।
कुछ भी किया हो मगर सदा,
तुम्हे अपना माना मैने सदा ।
तुम्हे अपना माना मैने सदा ।
क्या समझ सके हो तुम मेरे दिल को ,
या सब प्रयत्न व्यर्थ ही करता आया हूँ ।
या सब प्रयत्न व्यर्थ ही करता आया हूँ ।
जो कहा अभी सब तुम्हे प्रिये ,
क्या समझ मे कुछ तुम्हे आया है ।
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव है........
जवाब देंहटाएंसादर.
उन्हें पता तो सब होता है पर फिर भी अनजान बने रहते हैं वो ... सुनना चाहते हैं आपसे ...
जवाब देंहटाएंI do not even know how I ended up here, but I thought this post was good.
जवाब देंहटाएंI don't know who you are but certainly you are going to a famous blogger if you aren't already ;) Cheers!
Look at my web-site company site