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सोमवार, 4 जून 2012

परवाह..

परवाह करो तुम केवल उसकी ,
जिसको हो परवाह तुम्हारी ।
उसके लिए क्यों व्यर्थ तडपना ,
जो समझे नहीं परवाह तुम्हारी ।

बिन मांगे जो मिल जाए किसी को ,
वो माटी मोल हो जाता है ।
यही है जग की रीति सदा से ,
मुझे देर से समझ में आता है ।

भले सर्वस्य दान दे दो कुपात्र को ,
पर पुण्य ना अर्जित हो पाता है ।
जो अपना है वो जन्मजात अपना है ,
गैरो से रक्त सम्बन्ध कहाँ बन पाता है ।

कभी धोखा देते कुछ अपने भी ,
गैरो का साथ काम तब आता है ।
यहाँ अपने पराये का अंतर ,
जीवन भर चलता जाता है ।

जो समझे ना अन्तर्वासना औरो की ,
वो निज भोलेपन से मूर्ख बन जाता है ।

धोखा दिया मुझे अपनो ने ,
इसी दुःख में जलता जाता है ।



सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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