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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

अपनो के प्रति मेरा प्रेम्…

बचपन से मुझे अपनो के प्रति , अतिशय प्रेम लगाव था ।
आदरभाव और अपनेपन का , अतिशय मुझमे भाव था ।
नाना-नानी , दादा-दादी , चाचा-चाची, मासी और मामा ।
जब भी मिलता मै उनसे , मिलकर हो जाता था गामा ।
गाँव की गलिया , खेत के मेंड  , खलिहानो की पगडण्डी ।
आम के बाग मे खेला करते , गर्मी की होती जब छुट्टी ।

जितना ही अपनो के प्रति , रहता था मेरे मन मे प्यार ।
उससे ज्यदा ही मै पाता , अपने लिये अपनो से प्यार ।
ननिहाल से जब वापस जाता , या ददिहाल से वापस आता 
सब लोग भेजने आते थे , जब भी उनसे दूर कहीं मै जाता ।
गाँव की सीमा तक सब आते , फ़िर करके विदा खडे रह जाते
मै भी दूर तक उन्हे ताकता , पलट-पलट कर देखता जाता ।

जब तक दिखते नाना-नानी , उनके लिये  तडपता जाता ।
जैसे दिखना होते बन्द , दादा-दादी की याद मै पाता ।
यूँ ही दादा-दादी को भी , कुछ दूर राह मे रखता याद ।
वो जैसे नजर से होते दूर , भूल मै जाता उनकी याद ।
कहते थे सारे ही मुझको , इसे प्यार जहाँ तक नजर गया ।
ज्यो ही नजर हटी सब भूला , और माया मोह से दूर गया ।

सुनकर मुझको बुरा था लगता , मै था अपने दिल का सच्चा ।
कहता मै सब लोग गलत है , मै तो हूँ एक प्यारा सा बच्चा ।
फ़िर ज्यों ज्यों होता गया बडा, स्वयं ही बात समझ मे आया ।
प्यार असीमित है अपनो से, पर माया मोह से ना बँध पाया ।
अब भी मेरा हाल वही है, मन मे चाहत का अम्बार मै पाता ।
मगर नजर से हुआ जो दूर, वो दिल के कोनो मे छिप जाता ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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