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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

मन मेरा..

आज फिर उदास हूँ शायद , कुछ याद आ रहा है शायद ।
कुछ बोझिल सा है मन मेरा ,तेरी याद आ रही है शायद।
हैरत है क्यों बदल न पाया , चाह कर भी आदत अपनी ।
शब्दों से ही रहता खेलता , करने को व्यक्त व्यथा अपनी ।
लिखता हूँ कुछ शब्दों को , फिर स्वयं ही कटता हूँ उनको ।
यूँ ही अर्थ बदलता बारम्बार , स्वयं बोला था मैंने जिनको ।
हाँ सही कहा था तुमने शायद , है बच्चो जैसा मन मेरा ।
पल में लालयित पल में शांत , कुछ ऐसा ही है मन मेरा ।
जो मन को मेरे भा जाये , ततक्षण मुझे चाहिए बस वो ।
जो मन को मेरे भरमाये , स्वीकार नहीं मुझे भूले से वो ।
जो मेरा है बस मेरा है , मै कैसे उसका बँटवारा कर दूं ।
जो मेरा नहीं है अब तक ,मै कैसे उसको प्यारा कह दूं ।
जितना सीधा है दिल मेरा , उतना ही उलझा मन मेरा ।
तिल का ताड़ बनाने में सब कहते माहिर है मन मेरा ।
दोष नहीं कुछ इसमे मेरा , सत्य खोज ही लेता मन मेरा ।
बात गलत है अगर कोई , स्वीकार नहीं करता मन मेरा ।
अपनी भूलो को क्षण में , स्वीकार भी करता है मन मेरा ।
मगर तेरे भ्रमजाल में मित्रो , नहीं उलझता है मन मेरा ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. बात सही है अर्थ तो आप बदलने मे माहिर है , कविता अच्छी लगी ।

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  2. जी गोविन्द जी आरोप अच्छा लगाया है आपने…आभार हा हा हा

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  3. मन की उलझनों में उलझकर बहुत ही अच्छी
    कविता रच दी है
    बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

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स्वागत है आपका
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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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