मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

कोई कारण नहीं..

कोई कारण नहीं अकारण ही क्यों , तेरी साख पर मै बट्टा लगाऊ ।
तेरे धवल स्वेत वस्त्रो पर अकारण , अपनी कलम से धब्बे लगाऊ ।
तेरे उजले चहरे पर कालिख मलू , गधे पर तुमको उल्टा बिठाऊ 
तेरे नाम की एक तकथी बनवाकर , तेरे गले में उसको लटकाऊ ।
गली-गली चौराहों पर क्यों , जूतों से मै तेरा पुतला सजवाऊ ।
तुझको व्यर्थ अकारण ही क्यों , इतना मान-सम्मान दिलाऊ ।

बहुत दिनों से हर हफ्ते तुम , गुंडों को हफ्ता देते हो 
एक मुस्त धनराशी हमेशा , तुम सरकारी चंदा देते हो ।
अपने हाथो क़त्ल किसी का , कभी नहीं अब करते हो ।
कानून और रखवालो से , स्वप्न में भी नहीं डरते हो ।
हर बार घोटाला करके भी , सहयोग जांच में करते हो ।
भूले भटके कभी नहीं तुम , मेरा नाम उसमे रखते हो ।

कोई कारण नहीं अकारण क्यों , तुझको अतिरिक्त सम्मान दिलाऊ ।
तुम जनसेवक हो तो महापुरुष की , तुझको क्यों मै पदवी दिलवाऊ ।
मोस्ट वांटेड की कड़ियों में , मै तेरी सुन्दर तस्वीर भिजवाऊ ।
राष्ट्रीय नेता से उठाकर तुझको , अंतर-राष्टीय छवि दिलवाऊ ।
जो भी हो तुम महा-महान , गाता हूँ मै तेरा यशोगान ।
करना क्षमाँ मेरी भूलो का , न लेना मुझसे मानहान ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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