मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 9 जनवरी 2012

अर्थ का कोई अर्थ नहीं..


अंधियारे का अर्थ नहीं , अब कोई दीपक नहीं जलेगा ।
उजियारे का अर्थ नहीं , अब अन्धकार न फिर फैलेगा ।
कठिन राह का अर्थ नहीं , अब सुगम मार्ग ना निकलेगा ।
सहज सुगम का अर्थ नहीं , फिर कष्ट नहीं कोई उभरेगा ।
शत्रु दलों का अर्थ नहीं , कोई मित्र ना उनमे निकलेगा ।
शुलभ मित्रता का अर्थ नहीं , फिर शत्रु ना कोई पनपेगा ।
बँध जाने का अर्थ नहीं , अब मुक्ति कहाँ मिल पायेगी ।
व्यापक मुक्ति का अर्थ नहीं , वो बंधन फिर ना लायेगी ।
तुम्हे बिसराने का अर्थ नहीं , अब याद तेरी ना आयेगी ।
चिर यादों का अर्थ नहीं , वो बिसरायी कभी ना जायेगी ।
नव यौवन का अर्थ नहीं , जरा-अवस्था कभी ना आयेगी ।
शर शैया का अर्थ नहीं , मन में प्रीति ना वो जगाएगी ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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