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गुरुवार, 5 जनवरी 2012

रिश्तो की आधारशिला पर..

रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की ।
कुछ जन्मजात बनते रिश्ते , कुछ मिलते जन्म के बाद ही ।
कुछ रिश्ते स्वयं बन जाते हैं , कुछ मजबूरन लोग बनाते हैं ।
कुछ पल दो पल के होते रिश्ते , कुछ जीवन भर चल जाते हैं ।

कुछ में बहती भावो की धारा , कुछ में होता व्यवसाय भरा है ।
कुछ कर्तव्यबोध जगाते है , कुछ परिजीवी सा चूसते जाते हैं ।
कुछ के मूल में होता तन , कुछ रिश्तो का आधार बनाता मन ।
कुछ रिश्तो के पीछे होता धन , कुछ रिश्ते चलते जाते बे-मन ।

कुछ सुद्ध लाभ की रखते चाह  , कुछ रिश्तो दिखलाते हमको राह  ।
कुछ अपना सर्वस लुटाये है , कुछ रखते है मन में बस डाह ।
कुछ आदेशो के पालक होते , कुछ हम पर आदेश चलाते है ।
कुछ रिश्ते दिल में बस जाते है ,कुछ मनमर्जी करते जाते हैं ।

इन्ही रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की....

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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