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रविवार, 1 जनवरी 2012

पाप क्या और पुण्यं क्या...


पाप क्या और पुण्यं क्या , दोनों नदी के हैं किनारे ।
बीच में बहती है धारा , छूती सदा दोनों किनारे ।
बहु विविध हैं रंग उनके , बहु-विविध उनकी विधाये ।
चन्द्रमा की ही तरह , है बदलती उनकी कलाये ।
कल जिसे थे पाप कहते , आज कहलाता है पुण्यं ।
कल था जिसका मान कुछ , आज कहलाता है शून्य ।
है अगर तुमको जरूरत , जाकर खोजो उनका मूल ।
पाकर तुम हैरान होगे , एक ही है दोनों का मूल ।
है अगर अंतर कोई , वो सोंच की केवल दिशाए ।
एक पूरब है अगर , दूसरी पश्चिम कहाये ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक और सुन्दर..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नव वर्ष की शुभकामनायें|

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
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आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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