मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

पीने दो...

पीने दो मुझको जी भर , ना रोंको मुझको आज अभी 
दो चार ही प्याले टूटे है , मदिरा का है अम्बार अभी ।

मै तो आकर बैठा हूँ , दो चार पलो के पहले ही 
कुछ लोग यहाँ बैठे है , जो बिता चुके हैं युग ही ।
अब भी वो देखो प्यासे है , फिर माँग रहे हैं जाम अभी ।
मैंने तो बस चखा ही है , तर भी न हुए है ओंठ अभी ।
कैसे मै छोड़ कर उठ जाऊ , कैसे उस पार चला आऊ 
उस पार क़यामत व्यापी है , इस पार ही क्यों न बस जाऊ ।

तुम व्यर्थ में ही घबराते हो , क्यों उस पर मुझे बुलाते हो 
इस पार नहीं कोई बंदिश है , क्यों बंधन में फँसाते हो ।
इस पार बरसती हाला है , उस पार हर तरफ ज्वाला है ।
इस पार अभी मै होश में हूँ , उस पार सभी मदहोश ही है ।
फिर पीने दो कुछ जाम अभी , न व्यर्थ में नापो पैमानों से 
पहचान मै अपनी भूल गया , न पहचानो तुम मयखाने में ।

है अगर साथ देने का जज्बा , आओ बैठो साथ मेरे ।
वो देखो साकी आती है , देने को हाथो में जाम तेरे ।
आओ कुछ पल जी लो , तुम भी थोडा सा पी लो ।
अहंकार को भुला कर तुम , थोड़ी सादगी जी लो ।
पीकर ही तुम नमन करो , वर्ना तो झुंकता है बस तन ।
जब तक आँखे पुरनम ना हों , व्यर्थ झुंकाना है ये तन ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)