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रविवार, 2 अक्टूबर 2011

खोखलापन...

जो सबको नियम सिखाते है , अक्सर वो ही उसे भुलाते हैं ।
जो सबको सच बतलाते है , अक्सर वो ही धोखा खाते है ।
जब तक कथनी और करनी का , वो मेल नहीं कर पाते है ।
तब तक बस घोंघा बसंत सा , वो जीवन जीते जाते है ।
वो कठिन दौर होता है जब , हम स्वयं पर नियम लगाते है ।
अपने बताये आदर्शो को , हम स्वयं आगे बढ़ कर निभाते हैं ।

यूँ तो औरो को निश दिन ही , हम नियम नए बतलाते हैं ।
उनको पालन करने की कुछ , तरकीबे उन्हें सुझाते हैं ।
अपने कोरे-कोरे आदर्शो की , हम पुस्तक कई छपाते है ।
लेकिन उनको अपने ऊपर , हम कितना लागू कर पाते है ।
जब तक कथनी और करनी का , हम मेल नहीं कर पाते हैं ।
तब तक खोखले तने सा तनकर , हम यूँ ही मुरझाते जाते है ।

वो कठिन दौर होता है जब , हम अपनो से धोखा खाते हैं ।
अपनी आत्मा बेंच कर शायद , हम उसका मूल्य चुकाते हैं ।
जब तक हम निज जीवन में , खोखलापन नहीं मिटाते हैं ।
तब तक अपने ही जीवन से , हम धोखा करते जाते हैं ।
जो सबको नियम सिखाते है , अक्सर वो ही उसे भुलाते हैं ।
जो सबको सच बतलाते है , अक्सर वो ही धोखा खाते है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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