मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 14 सितंबर 2011

जाने कितने सपने है , जाने कितनी मर्यादायें...

जाने कितने सपने है , जाने कितनी मर्यादायें ।
जाने कितने पूरे होंगे , कितने धूल-धूसरित होंगे ।

जग में अगणित सपने हैं , अगणित हैं मर्यादा भी ।
कुछ तो दिखते पूरे पूरे हैं , कुछ टूटे फूटे खंडित भी ।
कुछ की होनी है नवरचना , कुछ भूले बिसरे यही पड़े ।
कुछ राहों में हैं साथ खड़े , कुछ जंगल में हैं कहीं पड़े ।
कुछ ठोकर बने हैं राहों में , कुछ धारा में मोहताज पड़े ।
कुछ अपने बल पर यहाँ खड़े , कुछ मरुभूमि में दबे पड़े ।

कुछ अपने पास बुलाते हैं , कुछ दूर से ही डरवाते हैं ।
कुछ के होते हैं अन्वेषण , कुछ के होते बस शोषण है  ।
कुछ आपस में रहते संघर्षरत ,कुछ एक दूजे के पूरक हैं ।
कुछ की अपनी धाराये है , कुछ सब धाराओं में बहते  है ।
कुछ बिलकुल मेरे अपने है, कुछ सारे जग के सपने हैं ।

कुछ अपनो के भी सपने है , कुछ सपनों में भी अपने है ।

जाने कितने पूरे होंगे , कितने धुल धूसरित होंगे ।
जाने कितने सपने हैं और , जाने कितनी मर्यादायें ।

किस किस का मै हाल बताऊँ , किस किस का मै नाम गिनाऊँ.........


 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)