मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 11 सितंबर 2011

हम सभी इन्सान हैं..

भावनावों के भंवर में ,
डूब जाता आदमी ।
डोर रिश्तो की पकड़ ,
पार जाता आदमी ।

कौन है ऐसा यहाँ , 
भावना शून्य हो ।
मोह माया भूल कर ,
कष्टों से दूर हो ।

हम सभी इन्सान हैं ,
भावना प्रधान हैं ।
मान और अपमान के ,
मध्य विराजमान हैं ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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