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सोमवार, 1 अगस्त 2011

आओ मै प्रेम सिखाता हूँ...

आओ मै प्रेम सिखाता हूँ , तुम्हे प्रेम के रूप बताता हूँ ।
कहते हो तुम जिसे प्रेम , उसका विस्तार बताता हूँ ।

जैसे बहती नदिया का , लगता हमको है जल प्यारा ।
पर जब वह रुक जाती है , दूषित हो जाता जल सारा ।
वैसे ही है प्रेम की धारा , रुकते ही हो कलह पुराना ।
बहती है जब इसकी धारा , सारा जब हमें लगता प्यारा । 

प्रेम नहीं है कभी सपाट , तीन कोण में उसका वास ।
काया , मन और अंतरात्मा , इनमे प्रेम का होता वास ।
काया करता जब भी प्रेम , प्रेम की होती केवल भ्रान्ति ।
शोषण होता बस औरों का , मन को नहीं मिलती शांति ।

काया से जब प्रेम करोगे , मन में घृणा वैमनस्य भरोगे ।
लालच वासना और लिप्सा , इनको ही तुम प्रेम कहोगे ।
फिर पाकर कष्ट प्रेम में तुम , जीते जी मर जाओगे  ।
या कायरता में होकर विरक्त , साधू सन्यासी हो जाओगे  ।

जब प्रेम जायेगा मन के तल पर , मन मयूर हो जायेगा ।
स्वाद मिलेगा तुम्हे अनोखा , पर स्वाद न थिर रह पायेगा ।
कभी बनेगा शिखर प्रेम का , कभी विषाद का छण भी आएगा ।
फिर प्रेम की इस छणभंगुरता से , एक नया द्वार खुल जायेगा ।

प्रेम युक्त जब होगी आत्मा , द्वव का भेद मिट जायेगा ।
छोड़ भरोसा किसी और का , स्वयं से प्रेम हो जायेगा ।
सच्चा प्रेम वही है जब , तेरा-मेरा भेद मिट जायेगा ।
यही प्रेम सभी कष्टों से , तुम्हे भवसागर पार ले जायेगा ।

तो आओ मै प्रेम सिखाता हूँ , पर मृत्यु का पाठ पढाता हूँ ।
है प्रेम गली अति सांकरी , उससे गुजरना तुम्हे बतलाता हूँ ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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