मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

मेरे मुखौटे...

कुछ लोग मुखौटे पहन रहे ,
कुछ लोग मुखौटा जीते हैं ।
जो लोग जमीं को तरस रहे ,
वही लोग आसमां जीते हैं ।

कुछ लोग सियासत करते हैं ,
कुछ लोग सियासत पहन रहे ।
कुछ लोग नजाकत रखते हैं ,
कुछ लोग नजाकत  ओढ़ रहे ।

यूँ हम भी अपने चहरे पर , कुछ एक मुखौटे रखते हैं ।
जिसने जैसा चाहा हमसे , वैसा ही हम उसे दिखते हैं ।
क्यों जिद करते हो तुम मुझसे, मेरे किसी और ही चेहरे को ।
तुम अभी गुलाब के आदी हो , मत माँगो के कमल फूलों को ।
इसको ही तो कहता हूँ  मै , सज्जनता सादगी मेरे जीवन की ।
एक बार जो तुमने देख लिया, वह मुखौटा न बदलेगा पुन: कभी ।

तुम चाहे जो भी नाम रखो , मै तो गिरगिट कहता हूँ ।
जो भी जैसी शाख मिली , मै वैसा ही रंग रखता हूँ ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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