शांत रहो....
'नियति को स्वीकार करो'
क्योंकि...
'जो हो रहा है वह पूर्व नियोजित है...'
और.....
'जो नहीं हो रहा है वह तुम्हारे वश में नहीं है....'
तो
अगर कर सकते हो तो अपने आप को इस होने और न होने के द्वन्द से मुक्त रखो और दूर से केवल दर्शक की भांति मजा लो ।
और
अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम चक्की के दो पाटो के मध्य उसी प्रकार पिस जाओगे जैसे 'आजकल' घुन के साथ गेंहू पिस जाता है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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